Parenting Insights

ममता एक परीक्षा

हर औरत का सपना होता है कि वह माँ बने।यह वह सपना होता है जिसे पूरा करने के लिए न जाने उसे कितने ही बलिदान देने पड़ते हैं और उसके द्वारा किये गए बलिदान कभी-कभी व्यर्थ भी हो जाया करती है ।

जब एक औरत पहली बार माँ बनती है, तो वह  केवल एक संतान को ही जन्म नहीं देती बल्कि खुद भी एक नया जन्म पाती हैं ।एक अनछुए सा एहसास उसके अन्दर प्रवेश कर जाता हैं ।वह  ममता के सागर में डूब जाती हैं और उस ममता के सागर से वह कभी भी बाहर नहीं निकल पाती है।एक माँ की ममता की कोई कीमत नहीं होती हैं ,वह  (माँ की ममता) तो अमूल्य हुआ करती हैं ।माँ की ममता न  तो एक  अमीर माँ में  अधिक होती हैं और  न ही एक गरीब माँ में कम होती है यह  तो  सबकी माताओं में  समान हुआ करती हैं ।पहली बार जब  एक माँ  अपने बच्चे को गोद में उठाती  है न  तो वह अपने प्रसव पीड़ा को भूलकर दिल  से मुस्कुराती हैं उसके आँखों में आंसू तो होते हैं, लेकिन खुशी के न  कि दर्द की ।

एक  माँ की  ममता की परीक्षा की शुरुआत तो तब  से  ही  हो जाती है जब एक स्त्री को पहली बार ये पता चलता हैं  कि एक नन्ही  सी जान उसके अन्दर पल रही  है । वह अपनी पूरी तरह से ख्याल रखने लगती उसे लगने लगता है कि कहीं उसकी एक गलती की वजह से शिशु को कुछ हो न जायें ।धीरे-धीरे दिन बीतते चले जाते हैं और एक स्त्री को वह सबकुछ  सहन करना  पड़ता है जिसके बारे में  वह शादी से पहले कभी सोचती  भी नहीं है।नौ महीने तक वह  शिशु को अपने गर्भ में रखकर ममता की परीक्षा देती हैं  इस  बीच उस स्त्री को क्या- क्या नहीं सहन करना पड़ता हैं?उल्टियाँ होती हैं,शरीर में दर्द होता हैं,जी  मचलता  हैं अलसीपन लगता हैं और भी बहुत तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं फिर भी, वह हार नहीं मानती हैं और खुशी खुशी एक शिशु को जन्म देती है ।

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शिशु के जन्म के साथ ही  एक माँ की असली परीक्षा शुरू हो जाती हैं ।उसके लिए (माँ के लिए)रोज एक नई चुनौती आकर खड़ी हो जाती हैं ।कभी-कभी तो शिशु के जन्म के साथ ही इतनी गम्भीर समस्या आ जाती हैं कि एक माँ का दिल रो उठता है फिर भी एक माँ की उम्मीद नहीं हारती।

मैं  जब पहली बार माँ बनी तो मुझे विशवास ही नहीं हो  रहा था कि जीवन की इतनी बड़ी परीक्षा मैंने पास  कर  ली लेकिन मेरा बच्चा वक्त से पहले आ  गया था इसलिए वह बहुत कमजोर था। वह मेरे दूध को भी नहीं पचा पा रहा था उसे लगातार उल्टियाँ हो रही थी  ।डाक्टर को दिखाने से  पता चला कि उसके पेट में बहुत सारा  कचरा जमा था। पाँच दिन तक डाक्टर रोज सुबह शाम उसे सूई लगाते और उसके  गले में पाईप डालकर कचरे  को बाहर निकालते थे।

बच्चे के हाथ और पैर में लगे हुए सूई को देखकर मैं तड़प उठती थी पर  जानती थी कि सूई उसके भलाई के लिए हैं ।इसी  तरह कुछ न  कुछ मेरे बेटे को होते ही  रहता था और मैं बहुत परेशान रहती थी।पोटी से  तो  मानो उसका रिश्ता ही जुड़ गया था।दिनभर  में  बीस  से  पच्चीस बार वह पोटी करता था और मैं साफ करते करते थक जाती थी।हमलोगों ने  (मैं और मेरे परिवार वालों ने)डाक्टर को बहुत दिखलाया लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ ।कुछ महीनों बाद मैं मायके गयी मेरे बेटे की ऐसी स्थिति देखकर मेरी माँ ने मुझे कुछ घरेलू नुस्ख़े बताया जिसका प्रयोग करके मैंने अपने बेटे की पोटी की समस्या को हल कर लिया। एक आश्चर्यजनक बात मेरे बेटे के साथ यह थी कि वह जन्म से ही अपने साथ एक दाँत लेकर आया था इस दुनिया में!

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दिन बीतते चले गये और मेरा बेटा नौ महीने का हो गया था एक दिन उसके छाती मे  बहुत कफ जमा हो गया उसके श्वास से  सें – सें की आवाज़े आ रही थी मैं अपने पति के साथ बेटे को डाक्टर पास ले गई वह डाक्टर हमारे शहर में  नया  था ।पुराने डाक्टर का दूसरे शहर में तबादला हो चुका था ।इस कारण हमें नये डाक्टर से  दिखलाना पड़ा। डाक्टर ने मेरे बेटे को ठीक से चेक भी नही किया और बोल दिया,”इसे  अस्थमा है”हमारी तो पैरों तले जमीन खिसक गई!हमारे शहर में निजी अस्पताल न होने के कारण मेरे बेटे को सरकारी अस्पताल में ही भर्ती करवाना पड़ा ।सरकारी अस्पताल की स्थति बहुत ही दयनीय थी सारे मरीज को एक साथ रख दिया गया था।

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डाक्टर का अता पता नहीं था मगर नर्स हर दो या तीन घंटे में आकर सूई लगाकर चली जाती ऊपर से हमारे पास वाले बेड  में  एक अस्थमा की रोगी थी जिसके पिता हमें डरा रहे थे तरह-तरह की बातें करके ।किसी तरह से मेरे बेटे को अस्पताल से छुट्टी मिल गयी और हम घर आ गए ।घर आकर हमसब ने निर्णय  लिया कि हम बच्चे को दूसरे राज्य में ले जाकर दिखायेंगे ,अपने शहर के  डाक्टर की दवाई  मैंने देना बंद कर दिया। हमने  बच्चे को दूसरे राज्य में ले जाकर एक प्रसिद्ध डाक्टर से दिखलाया तो पता चला की बच्चे को अस्थमा जैसी कोई बीमारी नहीं हैं उसके छाती मे तो कफ जमा हो गया था।डाक्टर ने मात्र एक सौ तीस  रुपये की दवाई लिखी और मेरा बेटा पूरी तरह से ठीक हो गया ।आज वह पाँच साल का हो चुका है।

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मेरी इस कहानी से यह पता चलता हैं कि हमारे देश में आरक्षण की आड़ में ऐसे ऐसे लोगों को डाक्टर की डिग्री मिल जाती हैं जो न जाने कितने लोगों की जान से खेल जाते हैं। इसलिए आप सब अपने अपने बच्चों का इलाज एक अच्छे डाक्टर से करवायें । एक बच्चे को अगर कुछ होता है तो पूरा परिवार उसे देखकर-देखकर रोता हैं।

गलत  हाथों से बच्चों का  इलाज न होने दें ,
सही हाथों से ही उन्हें स्वस्थ होने दें।
चोर बैठे हैं देश में भर भर कर ,
तुम चलना जरा सम्भाल कर।

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