रात का सन्नाटा गहरा था, और घर की चार दीवारी के अंदर एक अजीब सी शांति थी। पति ने करवट ली और बिस्तर पर सोई अपनी पत्नी को देखा। उसके चेहरे पर वही मासूमियत थी, जो हमेशा से उसे बहुत प्यारी लगती थी। उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन होंठों पर एक हल्की मुस्कान थी, जैसे वह किसी प्यारी सी याद में खोई हुई हो। वह अपनी पत्नी की तरफ झुका और हल्के से उसके बालों में हाथ फेरा। इस चुपचाप रात में, उसे एक अजीब सा अहसास हुआ।
“कितनी महान होती हैं ये महिलाएं।” उसने सोचा, “बरसों तक अपने माता-पिता के लाड़-प्यार में पलती-बढ़ती हैं, और एक दिन, सबकुछ छोड़कर, किसी अजनबी के साथ अपनी पूरी दुनिया बसा लेती हैं।”
लेकिन अचानक, उसके मन में एक और ख्याल आया। क्या वह अपनी पत्नी के साथ वही कर रहा था, जिसकी वह हकदार थी? क्या वह उसे उतना सम्मान दे रहा था, जितना उसे मिलना चाहिए था? क्या वह उसे उतना प्यार दे पा रहा था, जितना वह सच में चाहती थी?
यह ख्याल उसके दिल में कुछ गहरी उदासी और चिंताओं का कारण बना। वह याद करने लगा कि कैसे उनकी शादी के बाद कई बार उसने अपनी पत्नी की अनदेखी की थी। कुछ समय पहले, जब वह अपनी पत्नी के साथ एक छोटे से घर में सुकून से समय बिता रहा था, तब भी उसे अक्सर अपने कामों की चिंता रहती थी। वह अक्सर देर रात तक काम में खो जाता, और जब भी पत्नी कुछ बात करना चाहती, वह टाल देता। कभी अपने दोस्तों के साथ समय बिताने में उसे खुशी मिलती, तो कभी ऑफिस के कामों में। लेकिन क्या वह अपनी पत्नी को कभी समझ सका था?
एक दिन, जब उसकी पत्नी ने उसे इमोशनल होकर कहा था, “तुम मुझे समझते ही नहीं हो। तुम कभी मेरे साथ नहीं होते।” तो उसने जवाब दिया था, “मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, तुम जानती हो, लेकिन मैं कामों में व्यस्त हूँ।”
यह जवाब अब उसे काफी हल्का और बेतुका लगा। “क्या यही तरीका है प्यार का?” उसने सोचा।
उसे याद आया कि वह अपनी पत्नी को कितना अकेला छोड़ देता था। कई बार, जब उसकी पत्नी बीमार थी, वह उसके पास बैठने के बजाय ऑफिस के कामों में व्यस्त हो जाता। कभी-कभी उसे समझ में आता था कि वह जो कर रहा था, वह ठीक नहीं था, लेकिन फिर भी वह अपनी आदतों से बाहर नहीं निकल पा रहा था।
फिर एक दिन ऐसा हुआ, जब उनकी पत्नी ने अचानक घर छोड़ने का निर्णय लिया। वह कहने लगी, “मुझे लगता है कि मैं तुम्हारे साथ रहने के लायक नहीं हूँ। तुम अपने कामों में इतने व्यस्त हो, कि तुम मुझे और हमारे रिश्ते को भी नहीं समझ पा रहे हो।”
यह सुनकर पति को एक जोर का झटका लगा। उसकी आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया। वह पत्नी, जो हमेशा उसकी सबसे बड़ी सहारा रही थी, अब उसे छोड़ने का सोच रही थी। वह चुप रहा, लेकिन मन ही मन यह सोचने लगा कि क्या उसने कभी इस रिश्ते को सच्चे दिल से निभाया था?
अगले कुछ दिनों में, वह आत्मचिंतन करने लगा। क्या वह सचमुच अपनी पत्नी के साथ न्याय कर रहा था? क्या वह सिर्फ अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने में ही लगा हुआ था, और प्यार को एक ओर नजरअंदाज कर रहा था? इस सोच ने उसे अंदर से झकझोर दिया। उसने फैसला किया कि अब वह बदलने वाला है।
फिर एक दिन, उसने अपनी पत्नी से बैठकर बात की। “मैं समझता हूँ, तुम्हारे ग़म को, तुम्हारे दर्द को। और मैं वादा करता हूँ कि मैं अबसे तुम्हारे साथ और ज्यादा वक्त बिताऊँगा।”
पत्नी ने गहरी साँस ली और फिर कहा, “तुम्हारे बदलने के बाद मुझे और उम्मीदें थीं, लेकिन तुम्हारे शब्दों में सच्चाई होनी चाहिए। मैं अब तुम्हारे साथ रहकर हर पल को महसूस करना चाहती हूँ।”
यह सुनकर पति का दिल हल्का हो गया। वह जानता था कि यह सफर आसान नहीं होने वाला था, लेकिन उसने ठान लिया था कि वह अपनी पत्नी के साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताएगा, हर रिश्ते की जिम्मेदारी समझते हुए। वह जानता था कि अब सिर्फ प्यार से काम नहीं चलेगा, बल्कि मेहनत और समय देने से ही रिश्ता मजबूत बनेगा।
कुछ समय बाद, दोनों का रिश्ता और भी मजबूत हो गया। पति ने अपनी पत्नी के साथ समय बिताना शुरू कर दिया, छोटे-छोटे लम्हों में खुशियाँ तलाशने लगा। उसने समझा कि एक रिश्ते में सिर्फ प्यार ही नहीं, बल्कि एक-दूसरे के साथ खड़ा होना, एक-दूसरे को समझना और परवाह करना भी जरूरी है।
अंत में, पति ने महसूस किया कि रिश्ते सच्चे होते हैं, जब उसमें दोनों साथी एक-दूसरे के साथ खड़े होते हैं, और यही सबसे बड़ी बात है।